एनएसडी में महाकवि कालिदास की कालजयी कृति अभिज्ञानशाकुंतलम का हुआ मंचन

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नई दिल्ली, 8 जून। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में ग्रीष्मकालीन नाट्य समारोह के अंतर्गत दूसरे दिन महाकवि कालिदास की कालजयी कृति अभिज्ञानशाकुंतलम का मंचन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप पूर्व भाजपा सांसद एवं खेल एवं युवा राज्य मंत्री विजय गोयल उपस्थित रहे। इस नाटक का निर्देशन पद्मश्री विदुषी रीता गांगुली द्वारा किया गया। अभिज्ञानशाकुंतलम भारतीय रंगमंच की दृष्टि से काफी महत्व रखता है। यह नाटक मुख्य रूप से महाभारत के पात्र दुष्यंत और शकुन्तला के प्रेम, विरह और पुनर्मिलन को परिभाषित करने का काम करता है।

अभिज्ञानशाकुंतलम संस्कृत रंगमंच का नाटक है जो कि अपने विशिष्ट काव्यात्मक शैली में पात्रों के बीच संवाद स्थापित करने के लिए जाना जाता है। यह एक प्राचीन नाटक है जिसमें राजा दुष्यंत वनगमन के दौरान महर्षि कण्व की पुत्री शकुन्तला से प्रेम कर बैठते हैं और उससे गन्धर्व विवाह कर लेते हैं। दुष्यंत अपने राजधर्म का निर्वाह करने के लिए अपने राज्य लौट जाते हैं और शकुन्तला को स्मृति स्वरूप एक अंगूठी देकर जाते हैं। इधर शकुन्तला विरह वेदना में ग्रस्त होकर महर्षि दुर्वासा का अनादर कर बैठती है जिसपर ऋषि क्रोधित होकर उसे शाप दे देते हैं कि जिसके ध्यान में मग्न होकर उसने उनका अपमान किया है समय आने पर वह उसे ही भूल जाएगा। 

 कहानी करवट लेती कण्व शकुन्तला को दुष्यंत के पास भेजते हैं और दुष्यंत दुर्वासा के शाप के अनुसार उस समय भूल जाता है। बाद में शकुन्तला एक तेजवंत पुत्र भरत को जन्म देती है। दुष्यंत को जब अपनी गलती का आभास होता है तो वह शकुन्तला से क्षमा याचना करता है और अपने पुत्र भरत को साथ लेकर चला जाता है। कहानी यह दिखाती है कि उस समय भी पितृसत्ता महिलाओं को केवल उपभोग की वस्तु मात्र ही समझता था। यह नाटक आज भी प्रासंगिक है जब आधुनिकता की दौड़ में केवल आकर्षण हो जाने से पुरुष स्त्रियों से संबंध स्थापित करके उन्हें छोड़ देते हैं। यह कालजयी नाटक स्त्री विमर्श पर गंभीर चिंतन करने पर मजबूर करता है।

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