संकल्प मिश्र
देहरादून, 29 नवम्बर। अभाविप का 71वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन, उत्तराखंड की लोक संस्कृति, कला के दर्शन का बना केंद्र ।
देहरादून के परेड ग्राउंड में आयोजित अभाविप के 71 वें राष्ट्रीय अधिवेशन में उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बेहद सुंदर रूप में प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम स्थल के हर हिस्से में उत्तराखंड की पहचान, परंपरा और गर्व को दर्शाया गया । यह पूरा परिसर उत्तराखंड की संस्कृति और वीर परंपरा की झलक दिखाता है। अधिवेशन स्थल के मुख्य प्रवेशद्वार को ऐंपण और पिठौरा , लकड़ी की नक्काशी से तैयार किया गया है । मुख्य सभागार का प्रवेश द्वार बद्रीनाथ धाम के पारंपरिक एवं रचनात्मक स्वरूप में तैयार किया गया है। मंच पर उत्तराखंड के पहाड़ों और दार्शनिक स्थल ऑन का चित्रण किया गया है। जिससे देशभर से आए, युवाओं को उत्तराखंड की धार्मिक, अध्यात्मिक पहचान से अवगत कराना है, परिसर में प्रदर्शनी का प्रवेश द्वार केदारनाथ मन्दिर के स्वरूप में बनाया गया है। परिसर में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री—चारों धामों को विशेष रूप से दर्शाया गया है, जो देवभूमि की धार्मिक संस्कृति का मुख्य आधार हैं।
अधिवेशन परिसर की प्रदर्शनी में उत्तराखंड के सभी धार्मिक स्थलों, पहाड़ी वास्तुकला,लोक-कला, लोक संस्कृति का प्रदर्शनी की दीवारों पर रचनात्मक ढंग से प्रदर्शन किया गया। स्थल पर उत्तराखंड की पारंपरिक शिल्पकला को दर्शाने के लिए एक पहाड़ी घर बनाया गया, जो पहाड़ी वास्तुकला और लोक-परंपरा का सुंदर उदाहरण है।
उत्तराखंड की विविधता को दिखाते हुए कुमाउनी और गढ़वाली संस्कृति—जैसे परिधान, संगीत, लोककला, वाद्ययंत्र और लोक जीवन का सुंदर और जीवंत चित्रण किया गया।
अधिवेशन परिसर में उत्तराखंड की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए पहाड़ी वस्त्रों का स्टॉल , पहाड़ी भोजन,पहाड़ी कलाओं और हैंडमेड वस्तुओं के स्टाल भी लगाए गए। सभी स्टॉल्स में से युवा उत्तराखंड संस्कृति की पहचान के रूप में कुछ ना कुछ अपने प्रदेश लेकर जा रहे हैं ,इससे युवाओं में उत्तराखंड की संस्कृति के प्रति सम्मान और गौरव की भावना का विकास भी हुआ।
उत्तराखंड के भोजन का लिया आनंद
राष्ट्रीय अधिवेशन में आए सभी देशभर के कार्यकर्ताओं ने लोक-भोजन का भी आनंद लिया। उत्तराखंड के लोक भोजन मंडवे की रोटी, झंगुरे की खीर, कंडाली का साग,आलू के गुटके और अरसा जैसे व्यंजन शामिल हैं, जो स्थानीय सामग्री और पारंपरिक तकनीकों से बनाए गए। गढ़वाली व्यंजनों में फाणु और चैंसू जबकि कुमाऊँनी व्यंजन भट्ट की चुड़कानी और रस जैसे भोज्य पदार्थ सभी कार्यकर्ताओं, युवाओं को परोसे गए। जिससे सभी युवा एवं समाज, उत्तराखंड की पारंपरिक भोजन को जाने और स्वाद लें सकें।
इस माध्यम से अभाविप का राष्ट्रीय अधिवेशन उत्तराखंड की संस्कृति एवं आध्यात्मिकता के प्रदर्शन से पूरे देश के कोने-कोने से आये युवाओं तक पहुंचने का कार्य कर रहा है।
