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आपातकाल एक काला धब्बा है : आशीष चौहान
भोपाल, 19 जून। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के इंडिजीनियस आयाम द्वारा एलएनसीटी महाविद्यालय, भोपाल में आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर भारत के संवैधानिक इतिहास की उस घटनाओं की गूंज सुनाई दी, जिसने देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को चुनौती दी थी।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत संघचालक श्री अशोक पांडेय, अभाविप के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री आशीष चौहान, इंडिजीनियस के राष्ट्रीय संयोजक श्री आदित्य शर्मा, तथा एलएनसीटी ग्रुप के सचिव श्री अनुपम चौकसे उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों को आपातकाल के समय की वास्तविक घटनाओं, संविधान में हुए संशोधनों तथा उस कालखंड में हुए जन आंदोलनों की सच्चाई से अवगत कराना रहा। विद्यार्थियों ने गहराई से समझा कि किस प्रकार 25 जून 1975 को घोषित आपातकाल ने भारत के संविधान, प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों को प्रभावित किया।

श्री अशोक पांडेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि आपातकाल भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों पर सीधा प्रहार था। उन्होंने बताया कि कैसे 1971 में इंदिरा गांधी के खिलाफ याचिका दायर की गई, और इसके पश्चात नव निर्माण समिति का गठन हुआ।
उन्होंने 1975-77 के दौरान देश में हुए दमन, गिरफ्तारी, गोलीकांड, तथा संविधान संशोधनों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 352, 356, 360 जैसे अनुच्छेदों का दुरुपयोग करते हुए आपातकाल थोपा गया और अनुच्छेद 14, 19, 22 को निलंबित कर दिया गया।
उन्होंने यह भी साझा किया कि कैसे आंदोलनकारियों को जेल में यातनाएं दी गईं और लोकतंत्र की पुकार को दबाने का प्रयास हुआ। उनके अनुसार, आपातकाल का विरोध जन आंदोलन के माध्यम से ही संभव हुआ और अंततः लोकतंत्र की पुनः स्थापना हुई।

आशीष चौहान ने कहा कि आपातकाल एक काला धब्बा था अर्थात एक ऐसा प्रयोग, जिसने संविधान की आत्मा को झकझोर दिया।
उन्होंने मीसा जैसे काले कानूनों का उल्लेख किया और बताया कि किस प्रकार प्रेस, अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया।
उन्होंने भारतीय परंपरा और लोकतांत्रिक प्रणाली की ऐतिहासिक जड़ों पर चर्चा करते हुए उत्तरमेरूर (तमिलनाडु) के शिलालेखों का उल्लेख किया, जिसमें चुनाव और जनप्रतिनिधियों के चयन की प्राचीन व्यवस्था अंकित है।
उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी को इतिहास से सीख लेकर सशक्त लोकतंत्र के लिए सजग नागरिक की भूमिका निभानी चाहिए।
श्री आदित्य शर्मा ने कहा कि आज जो लोग बार-बार संविधान की दुहाई देते हैं, उन्हें यह भी आत्ममंथन करना चाहिए कि उन्होंने स्वयं संविधान के साथ क्या किया है। जिनकी राजनीतिक परंपरा में लोकतंत्र का कोई स्थान नहीं रहा, वे ही आज संविधान की रक्षा की बातें कर रहे हैं। वास्तव में उन्हें तो संविधान को छूने तक का नैतिक अधिकार नहीं है।
जब सत्ता में बैठे लोग वी द पीपल की जगह हू द पीपल पूछने लगते हैं, तब हर युग के चाणक्य की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि वह उस राजा को सत्ता से हटाकर किसी सामान्य जन, किसी चंद्रगुप्त को मार्ग दे। यही लोकतंत्र की असली आत्मा है।
कार्यक्रम में महाविद्यालय के सैकड़ों छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही, जिन्होंने गहरी रुचि के साथ वक्ताओं के विचारों को सुना और समझा।

यह संगोष्ठी न केवल एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन थी, बल्कि आज के विद्यार्थियों के लिए एक चेतना Gaon संदेश भी कि लोकतंत्र की रक्षा केवल संवैधानिक प्रावधानों से नहीं, बल्कि जागरूक नागरिकों के सतत प्रयास से ही संभव है।

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