नई दिल्ली, 20 अप्रैल। डॉ भीमराव अंबेडकर कॉलेज के हिंदी विभाग ने हिंदी भाषा का वैश्विक परिदृश्य: आर्थिक, राजनयिक एवं शैक्षणिक संदर्भ विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के दूसरे दिन देश-विदेश के वक्ताओं ने हिंदी भाषा पर विचार व्यक्त किए। प्रथम सत्र की अध्यक्षता भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व महानिदेशक के जी सुरेश ने किया।
प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए फिजी के शिक्षा मंत्रालय की पूर्व शिक्षा अधिकारी मनीषा राम रक्खा ने हिंदी के शैक्षणिक संदर्भ में कहा कि भाषा केवल संप्रेषण के लिए नहीं होती है बल्कि उससे सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य जुड़े होते हैं। उन्होंने बताया कि फिजी में हिंदी को पूर्ण मान्यता प्राप्त है और हिंदी आम बोलचाल की भाषा के रूप में इस्तेमाल होती है। फिजी के तीनों विश्वविद्यालयों में हिंदी में पठन पाठन होता है और योग , दर्शन जैसे विषय भी हिंदी में ही पढ़ाए जाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि फिजी में हिंदी का विकास तीन कालों में हुआ। पहला काल खंड हमारे पूर्वजों का रहा जो संघर्ष का कल था। इस कल में गिरमिटिया के नाम से जाने गए पूर्वजों ने अपने दुःख को हिन्दी के अभिव्यक्ति देने की कोशिश की जो ‘फिजी बोली’ के नाम से जाना गया। भारत के सारे प्रदेशों से जबरन लाए गए हमारे पूर्वजों ने हिंदी, तमिल, भोजपुरी, हरियाणवी जैसी बोली और भाषाओं के शब्दों के संयोग से हिंदी में फिजी बोली को स्थापित किया। इसके बाद के काल खंड में फिजी में हिंदी का मानकीकरण किया गया। अब तो हिंदी यहां शोध और विज्ञान की भाषा बन चुकी है। वर्तमान में इंटरनेट के दौर में चैट में हिंदी को रोमन लिपि में लिखे जाने का प्रचलन युवा पीढ़ी में हिंदी से दुराव पैदा कर रहा है जो चिंता का विषय है।
जापान के मुसाशीनों विश्वविद्यालय के प्रो हिरोयुकी सतो ने कहा कि हिंदी फिल्मों को देखने और समझने से भारतीय समाज का पता चलता है। हिंदी फिल्में भारतीय संस्कृति की परिचायक हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तक और बोलचाल की भाषा में अंतर होता है। उन्होंने एक दूसरे की संस्कृति और साहित्य को समझने पर जोर दिया।
उत्थान फाउंडेशन की निदेशक अरुणा धवाना ने कहा कि सुरेनाम में गिरमिटिया समाज ने हिंदी को स्थापित करने में महत्ती भूमिका निभाई है।
द्वितीय सत्र में जर्मनी के हेमांग विश्वविद्यालय के आधुनिक भारत विद्या विभाग के डॉ राम प्रसाद भट्ट ने कहा कि हिंदी में सुधार की आवश्यकता है। आजकल हिंदी जो भी लेखन कार्य हो रहा है उसमें काफी अशुद्धियां रहती हैं। इससे नवीन पाठकों में हिंदी को लेकर नकारात्मक छवि बनती है।
न्यूजीलैंड के मैसी विश्वविद्यालय के वित्तीय शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र की निदेशक डॉ पुष्पा भारद्वाज वुड ने कहा कि न्यूजीलैंड से सबसे पहले भारत दर्शन नाम की साहित्यिक पत्रिका निकली थी जिसने न्यूज़ीलैंडवासियों में हिन्दी के प्रचार प्रसार में महत्ती भूमिका निभाई। न्यूजीलैंड के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हिंदी में शिक्षण कार्य होते हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी को आमजन की भाषा बनना जरूरी है। तभी हिंदी का सामरिक विकास संभव है।
समापन सत्र की अध्यक्षता पद्मभूषण , वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्षता रामबहादुर राय ने की। उन्होंने कहा कि हिंदी में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। यह भाव मन से निकाल दें कि हिंदी खतरे में है। हिंदी और भारत का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। उन्होंने बी एल गौड़ द्वारा लिखित पुस्तक कैसे बने विश्वकर्मा का उदाहरण देते हुए कहा कि हिंदी भाषा में लिखित इस पुस्तक को पढ़कर हज़ारों लोग इंजीनियर बनें हैं और रोजगार प्राप्त किए हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्रो. अनिल राय ने कहा कि भाषा पानी की तरह बहती है और बढ़ती है। हिंदी विश्व की ऐसी भाषा है जो अन्य भाषाओं के शब्दों को अपने अंदर समाहित करती है। उन्होंने कहा कि भाषा के प्रति सम्मान मन से निकलता है। इसीलिए हीनता का भाव अपने अंदर न आने दें।
संगोष्ठी का शुभारंभ मां सरस्वती ने समक्ष दीपार्जन के साथ हुआ। अतिथियों का स्वागत पौधा, शॉल और स्मृतिचिन्ह देकर किया गया। मंच संचालन डॉ विनीत कुमार ने किया। कार्यक्रम में प्रो. चित्रा रानी, प्रो. ममता वालिया, प्रो. शशि रानी, प्रो. कुसुम नेहरा, रजनी आदि शिक्षाओं के साथ भारी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।
भाषा पानी की तरह बहती है और बढ़ती है:- प्रो. अनिल राय

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