खजाने की शोधयात्रा जनप्रिय पुस्तक : जे नंदकुमार
रंजना बिष्ट
नई दिल्ली, 26 जुलाई। प्रज्ञा प्रवाह सभागार, केशवकुंज नई दिल्ली में प्रशांत पोल की पुस्तक खजाने की शोधयात्रा का लोकार्पण प्रख्यात चिंतक एवं प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक माननीय श्री जे नंदकुमार द्वारा किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार एवं पूर्व राज्यसभा सांसद, माननीय श्री बलबीर पुंज ने किया।
प्रभात प्रकाशन के प्रमुख श्री प्रभात कुमार ने मंच पर बैठे गणमान्य व्यक्तियों एवं सभागार में उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत किया तथा संक्षेप में पुस्तक और लेखक का परिचय दिया। पुस्तक के लेखक प्रशांत पोल ने खजाने की शोध यात्रा पुस्तक के विषय में कई रोचक जानकारियां दी। उन्होंने बताया कि यह पुस्तक भारतीय ज्ञान का खजाना पुस्तक का ही दूसरा भाग है। उन्होंने अपनी विदेश यात्रा का अनुभव सांझा करते हुए बताया कि इटली में आप कहीं भी चले जाएं वेनिस हो या वेटिकन सिटी वे वर्षभर लियोनार्डो द विंची पर विविध कार्यक्रम विभिन्न दृष्टिकोणों से आयोजित किए जाते हैं। वे अपने यहां की विभूतियों के लिए उत्सव मनाते हैं। हमारे देश में उनके जैसे अनेक विद्वान, विभूतियां हुई जिनमें एक थे वराह मीर जिन्हें ईरान के राजा ने बुलाया था, वे बड़े विद्वान थे। मगर हम उन्हें नहीं जानते। ऐसी स्थिती में विश्वगुरु बनना कठिन है यदि हम अपने विद्वानों को नहीं जानते, भारतीय ज्ञान परंपरा पर हमें कार्य करना चाहिए। युवा पीढ़ी में इसका अभिमान होना चाहिए, जिन्होंने कार्य किया है उन्हे पहचान और श्रेय मिलना चाहिए। हमारा एक महान इतिहास रहा है, मगर क्या हम यही ठहर जाएंगे, मौसम का पूर्वानुमान लगाने और कृषि में हम बहुत संपन्न थे, हमारे यहां ऋषि परासर थे जिन्होंने पौष माह में हवा की गति के आधार पर वर्षभर की वर्षा का अनुमान लगाने की विधि खोज निकाली थी। यह पुस्तक पाठकों के मन में शोध करने के प्रति रुचि जागृत करती हैं।
इस अवसर पर माननीय जे नंदकुमार जी ने कहा कि इस खजाने की शोधयात्रा क्यों आवश्यक है। इस पुस्तक से स्पष्ट हो जाएगा, भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जो ज्ञान देने ओर लेने की प्रक्रिया में परमानंद और आनंद प्राप्त करता है। हमारे देश में नाम भी सोच विचारकर रखे जाते हैं, नाम देने की एक परिपाटी है, परंपरा है। राम हो चाहे श्रीकृष्ण, हमारे यहां आंतरिक गुणों के आधार पर नाम रखे जाते है, दूसरे कल्चर में बाहरी लक्षणों को देखकर रखे जाते है। प्रशांत जी की पुस्तक के माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा के संदर्भ में ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिलेगा। इसका पहला खंड, निरंतर सुधार की प्रक्रिया पर आधारित है भारतीय ज्ञान परंपरा, इसमें प्रमाण को महत्व दिया जाता है, तीसरा यह नवाचार के माध्यम से आगे बढ़ता जा रहा है, यह एक साहसिक पहल है, इसका फलक व्यापक और सर्वग्राही है, यह समावेशी है, अन्योन्याश्रित भी है, अंतर्संबंध भी है, देखने का नजरिया बदलने की जरूरत है। यह पुस्तक जय की द्योतक है इसमें 18 अध्याय हैं, यह एक जनप्रिय पुस्तक है, लेखक ने अपनी अदभुत रचनात्मक शैली के माध्यम से विज्ञान जैसे विषय को सुरुचिपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया है।
लोकार्पण के अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार एवं विचारक पूर्व राज्यसभा सांसद माननीय बलबीर पुंज ने कहा की पुस्तक का कलेवर बहुत सुंदर है, इसका कंटेंट भी अच्छा है, प्रस्तुति भी सुंदर है, शब्द विन्यास से पाठक बंध जाता है, यह एक सिक्वल है, इस पुस्तक का अंग्रेजी वर्जन भी आना चाहिए। लिखना क्यों जरूरी है, सनातन संस्कृति अनेक बाह्य हमलों के कारण ध्वस्त हुई। बौद्धिक विरासत को नष्ट किया गया। अगर लगातार यह हमले नहीं होते तो विश्व का इतिहास ओर भूगोल बदला हुआ होता। अब तक हम अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे अब हम ज्ञान परंपरा पर कार्य कर रहे हैं। इस पुस्तका के गुजराती और हिन्दी संस्कारण का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम के अंत में ईशान जोशी जी ने लेखक तथा प्रकाशक का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया।