करुणा नयन
नई दिल्ली, 7 दिसम्बर। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली में महान नाटककार विजय तेंदुलकर का नाटक खामोश अदालत जारी है का विमर्शपूर्ण मंचन किया गया। यह नाटक बताता है कि इक्कीसवीं सदी में दुनिया ने कदम रख दिया है। मनुष्य स्वयं को विकसित की संज्ञा प्रदान कर चुका है। लेकिन इसी मनुष्य ने अभी तक महिलाओं को हक, इज्जत और शोहरत नहीं प्रदान की है जिसकी वह हकदार हैं। आज भी महिलाओं को अन्य कई मामलों में लज्जा की दृष्टि से देखा जाता है। उनके रहन-सहन, चाल-चरित्र पर पितृसत्तात्मक समाज द्वारा प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है। इन्हीं सभी कहानियों को एक सूत्र में समेटे है नाटक खामोश अदालत जारी है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों ने बहुमुख सभागार में खामोश अदालत जारी है नाटक का मंचन खत्म किया तो दर्शकों की तालियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं। क्योंकि इन कलाकारों ने अपने शानदार अभिनय से लोगों को भावनात्मक रूप से अपने वशीभूत कर लिया था।
नाटक की शुरुआत कुछ ऐसे होती है। मुंबई की नाट्य मंडली के एक छोटे कस्बे में नाटक खेलने जाती है। नाट्य मंडली एक शिक्षिका ( लीला बेणरे ), असफल वकील ( सुखात्मे ), इंटर फेल साइंटिस्ट ( पोंगशे ), मंडली मालिक काशीकार और उसकी पत्नी एवं एक देहाती युवक ( सामंत ) है। समय बिताने के लिए सभी मिलकर एक नाटक की शुरुआत करते हैं और उसमें झूठ-मूठ का एक मुकदमा शुरू किया जाता है। मुकदमे अभियुक्त की भूमिका मिस बेणरे को प्रदान की जाती है और उनके ऊपर भ्रूण हत्या के इल्ज़ाम का मुकदमा चलाया जाता है। मुकदमे के दौरान ही पता चल जाता है कि जो केस आनंद करने के लिए मिस बेणरे पर चलाया जा रहा है वह सही है। उनके गर्भ में उसी मंडली के प्रोफेसर का शिशू पल रहा है और वह अपने पितृ कर्म को छोड़कर भाग गया है। नाटक में मुकदमे के दौरान सभी मंडली के सदस्यों के मुखौटे सामने आने शुरू होते हैं। सभी कलाकारों की मिस बेणरे के प्रति पूर्वाग्रह, ईर्ष्या और मानसिक सूक्ष्मता सामने आती है। मुकदमे के अंत में मिस बेणरे को वही करने को कहा जाता है जिसके लिए उसपर अनजाने में मुकदमा चलाया जाता है। यह नाटक क्रूरता की सीमा को पार कर वीभत्सता को सामने लाता है। नाटक के हर फ्रेम में बढ़ते तनाव, ठहाकों और उसके बीच में मानसिक प्रताड़ना से जूझती मिस बेणरे अंत हौसला नहीं हारती है और वह निर्णय लेती है कि जब इस जघन्य कृत्य के लिए वह प्रोफेसर लज्जित नहीं हुआ तो भला मैं क्यों होऊं। वह कहती है कि जब दो वयस्क लोगों ने स्वेच्छा से सम्बन्ध स्थापित किए तो फिर स्त्री ही दोषी क्यों बने ? यदि बिना शादी के संबंध स्थापित करना पाप है तो उस पाप के भागीदार प्रोफेसर भी होंगे। नाटक यहीं आकर खत्म होता है।
खामोश अदालत जारी है नाटक में नाटक के भीतर एक नाटक चलता है। इसमें जैसे-जैसे मिस बेणरे की जीवन गाथा खुलती जाती है वैसे ही हमारे आसपास समाज में विद्यमान पितृसत्तात्मक, यौन कुंठा, निक्रिय स्याह मर्दाना और स्त्री दमन और द्वेष की सतह खुलकर सामने आ जाती है। अस्मि ने मिस बेणरे के किरदार को शानदार रूप प्रदान किया है। उनका अभिनय दिलों में उतर जाता है। सुखात्मे की भूमिका में ऋषिकांत ने शानदार अभिनय किया है। अनिरुद्ध ख़ुत्वाड़ का निर्देशन बेहद शानदार रहा । उन्होंने लोगों को अपने निर्देशन कौशल से मंच से हटने नहीं दिया। नाटक की मच सज्जा व प्रकाश सज्जा बहुत व्यवस्थित व प्रभावी थी। वहीं कलाकारों का स्वस्त्र सज्जा सुप्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी पसकी द्वारा किया गया था। जिसमें मराठी तमसा का प्रभाव दिखा। प्रणय राणा का बहुत प्रभावी अभिनय था उन्सकी भाव भंगिमा भी बहुत प्रभावी थी। इस नाटक को देश भर में दिखाया जाना चाहिए जिससे स्त्री छवि को लोग स्टीरियो टाइप न देखे। वास्तव में स्त्री सृष्टि निर्माता है। समाज दकियानूसी मानसिकता से बाहर निकले यह संदेश लोगों में जाना चाहिए। कुल मिलाकर नाटक दर्शकों में एक बेहतर प्रभाव व छवि निर्मित किया। ऐसे बेहतरीन नाटक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निर्देशक चितरंजन त्रिपाठी के सहयोग व उनकी प्रशासनिक देख रेख में ही बन सकते हैं।
