देश का सबसे बड़ा शिक्षक संगठन एनडीटीएफ़ की पदाधिकारी डॉ. आकांक्षा खुराना जो डूटा चुनाव में एक्जिक्यूटिव काउंसिल के लिए चुनी गईं, सबसे अधिक वोट पाने का रिकार्ड कायम किया। हमारे पत्रकार सुभाष गौतम ने उनसे दिल्ली विशविद्यालय के तमाम मुद्दों पर बातचीत किया।
प्रश्न- इस बार दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ का चुनाव काफी अलग रहा। कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं। लेकिन जब परिणाम आए तो पूरे विश्वविद्यालय की राजनीति पलट गई। इस पर आपका क्या विचार है?
डॉ. आकांक्षा खुराना- पहली बात मैं यह कहना चाहूंगी कि मैं दो बार से चुनाव में सक्रिय रहीं हूं और मैं वर्ष 2015 से दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़ी हुई हूं, उसी समय से देख रही हूं कि दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षण संघ का चुनाव अलग ही होता है। इस बार का चुनाव भी थोड़ा अलग रहा। हांलांकि पिछले साल जो डॉटेड डूटा एलायंस था, उन्होंने इसबार भी एलायंस बनाने की कोशिश की और उसमें वह नाकामयाब रही। इस बार त्रिकोणीय चुनाव होने की वजह से कई लोगों को लग रहा था कि एनडीटीएफ नहीं जीत पाएगा। लेकिन हमें यकीन था कि हम जीतेंगे और जीते भी।
प्रश्न- इस बार के चुनाव में पूरब बनाम दिल्ली का नैरेटिव गढ़ा गया। उसपर आपकी क्या राय है?
डॉ. आकांक्षा खुराना- ऐसे नैरेटिव तो हर चुनाव में सामने आते हैं। लेकिन यदि आप जमीनी स्तर पर रहकर कार्य करते हैं तो पूरब, पश्चिम आदि चीजें ज्यादा मैटर नहीं करती है। नैरेटिव बनाना विपक्ष का काम है। लेकिन उसे ध्वस्त करके पॉजिटिव इंटेंट दिखाते हुए अपना काम करना हमारा उद्देश्य है। जिसमें हम सफल भी हुए। इस दौरान नेगी जी और भागी जी का पूरा मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और उनके अनुभवों ने हम सभी कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम किया।
प्रश्न- दिल्ली विश्वविद्यालय में अतिथि शिक्षकों की एक लंबी फेहरिस्त है। उनको लेकर आपकी क्या नीति है ?
डॉ. आकांक्षा खुराना- मेरे संपर्क में विश्वविद्यालय के सभी अतिथि शिक्षक हैं। हमारी और एनडीटीएफ की नीति इस विषय को लेकर बेहद स्पष्ट है कि हमें गेस्ट को एडहॉक नहीं बनने देना है। बल्कि उन्हें परमानेंट नियुक्तियों की तरफ ले जाना है। यहां बहुत नैरेटिव बनाए जाते हैं कि एनडीटीएफ नहीं चाहता कि गेस्ट परमानेंट हों। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। हमारा लॉन्ग टर्म गोल है कि जहां पर वर्कलोड बढ़ रहा है, वहां के प्रिंसिपल एडवरटाइजमेंट निकालकर कर पोजीशन क्रिएट करें। ताकि इस समस्या का समाधान हो सके।
प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने को लेकर एनडीटीएफ और डूटा की क्या योजना है?
डॉ. आकांक्षा खुराना- राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कोई समस्या नहीं है। यह नीति अपने आपमें बहुत अच्छी है। इसमें जो हमारी क्षेत्रीय भाषाएं हैं उनका प्रयोग भी किया जा रहा है जोकि प्रशंसनीय है। लेकिन इसके क्रियान्वयन में थोड़ी दिक्कत है। इस समस्या से हमने वाइस चांसलर को अवगत कराया है और उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सफल क्रियान्वयन को लेकर रिव्यू कमेटी बनाने के लिए कहा है।
प्रश्न- आप एक शिक्षिका हैं और राजनीति में भी सक्रिय हैं। ऐसे में दोनों में सामंजस्य कैसे स्थापित करती हैं?
डॉ. आकांक्षा खुराना- मेरी फैमिली इस मामले में बहुत सपोर्टिव है। एक महिला होने के नाते यह बहुत कठिन काम है। क्योंकि घर परिवार को संभालते हुए राजनीति में सक्रिय होना बहुत कठिन काम है। हालांकि राजनीति में सक्रिय होने के कारण मेरे एकेडमिक्स पर जरूर प्रभाव पड़ा है। ऐसा नहीं है कि मैं शिक्षण कार्य में सक्रिय नहीं हूं। मैं रोज कॉलेज जाती हूँ और विद्यार्थियों से मिलती हूँ। क्योंकि यही मेरी पूंजी है।
