नई दिल्ली, 19 जून। दिल्ली स्थिति राष्ट्रीय नाट्य।विद्यालय की रेपर्टरी द्वारा आयोजित समर थिएटर फेस्टिवल की पाँचवीं प्रस्तुति लैला मजनूं का भव्य मंचन किया गया। इस नाटक को सुप्रसिद्ध लेखक इस्माइल चूनारा ने लिखा है और निर्देशन किया जाने माने रंगकर्मी राम गोपाल बजाज ने। अभिमंच ऑडिटोरियम में मंचित यह नाटक प्रेम, विरह और सामाजिक बंधनों की गहराई से भावनात्मक और काव्यात्मक पड़ताल प्रस्तुत करता है, जो इस किंवदंती जैसी प्रेम कथा की जड़ों में बसा है। इसके गीतात्मक संवादों, भावपूर्ण अभिनय, विशिष्ट प्रस्तुतिकरण और प्रभावशाली दृश्यविधान ने दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ा।
यह मंचन एक अनूठी प्रस्तुति है जिसमें लैला मजनूँ की प्रेम कहानी को एक नई और जीवंत दृष्टि से प्रस्तुत किया गया है। इस नाटक में 7वीं सदी की शुरुआत में मध्य-पूर्व के एक सन्दर्भ में स्थापित किए गए कथानक में दो युवा प्रेमियों की मर्मस्पर्शी यात्रा को जीवंत किया गया है।
नाटक की शुरुआत में दर्शकों को एक दृश्य दिखाया जाता है जिसमें प्रेम के गहरे अर्थ और उसकी जटिलताओं को सामने रखा गया है। यह प्रेम कहानी दिखाती है कि कैसे इन दो युवा प्रेमियों के रिश्ते ने उनके समाज और संस्कृति को प्रभावित किया, और कैसे उनकी भावनाओं ने दुनिया को प्रेम और बलिदान का सही अर्थ समझाया।
इस नाटक के मुख्य पात्रों में लैला, एक कोमल और भावुक महिला, तथा मजनूँ, एक दृढ़ निश्चयी और प्रेम के प्रति समर्पित युवक, शामिल हैं। लैला के माता-पिता की इच्छा के विपरीत, मजनूँ अपने प्रेम के लिए किसी भी कठिनाई का सामना करने को तैयार रहता है, और इसी संकल्प को निभाते हुए वह अपनी भावनाओं को सभी के सामने प्रदर्शित करता है। लैला और मजनूँ के बीच यह प्रेम उनके आत्मिक संबंध की गहराई को दर्शाता है।
अलग-अलग संस्कृतियों और समाजों में मानवीय भावनाओं की जटिलताओं और गहराइयों को उकेरता यह नाटक दर्शकों को आत्मिक और मानसिक स्तर पर जोड़ता है। प्रेम, त्याग और सामाजिक बंधनों के बीच संघर्ष की यह कहानी कई तरह के प्रश्न खड़े करती है—क्या सच्चे प्रेम की कोई सीमा है? क्या किसी के प्रेम का मूल्य सामाजिक स्वीकृति से अधिक होता है?