यह शाम कजरी, झूला, मल्हार, ठुमरी और ग़ज़लों की समृद्ध संगीत विरासत को एक हार्दिक श्रद्धांजलि थी। इन विधाओं ने सदियों से मानसून से जुड़ी लालसा, आनंद, प्रेम और आध्यात्मिक भक्ति जैसी भावनाओं को स्वर दिया है।
कार्यक्रम का शुभारंभ पारंपरिक दीप प्रज्वलन और स्वागत समारोह के साथ हुआ, जिसमें मुख्य अतिथि माननीय श्री गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री, भारत सरकार उपस्थित थे। इस अवसर पर दिल्ली के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री कपिल मिश्रा और संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डॉ. संध्या पुरेचा ने भी अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराई।
सोंचिरैया (https://sonchiraiya.org) द्वारा संकल्पित एवं प्रस्तुत, तथा एक्सक्यूरेटर इवेंट्स द्वारा निर्मित और प्रचारित यह आयोजन दर्शकों को भारतीय मानसून की दृश्य, श्रव्य और भावनात्मक अनुभूतियों में पूरी तरह से डूब जाने का आमंत्रण दिया। ‘सावन’ उन कालजयी रागों और लोक ध्वनियों को पुनर्जीवित किया, जो पीढ़ियों और सीमाओं को पार करते हुए आज भी हमारी सांस्कृतिक स्मृतियों में गूंजते हैं। यह संध्या केवल एक प्रस्तुति नहीं, बल्कि भारतीय ऋतु संस्कृति की आत्मा से जुड़ने का एक अवसर था।
सावन की सांस्कृतिक और भावनात्मक आत्मा को समर्पित इस संगीतमय संध्या को श्रद्धांजलि स्वरूप रचा गया था। लगभग दो घंटे की इस सुरमयी यात्रा में कजरी, झूला, मल्हार, विंटेज ठुमरी और दुर्लभ ग़ज़लों के माध्यम से सावन की मोहकता को जीवंत किया गया — वे संगीत विधाएँ जो पीढ़ियों से बरसात, प्रेम, भक्ति और विरह की अनुभूतियों को स्वर देती रही हैं।
सावन कार्यक्रम पर अपने विचार रखते हुए मालिनी अवस्थी ने कहा था, “वर्षा का आगमन, धरती ही नहीं, हम सबके तन मन में आशा उमंग और प्रसन्नता लेकर आता है, मैं आपके लिए ला रही थी “सावन”, सावन के महीने में बरसने वाले आनंद की संगीतमय अभिव्यक्ति! संगीत ने सदा प्रकृति से प्रेरणा ली है, इसीलिए वर्षा को उत्सव के रूप में माने जाने की परंपरा है। मौसम में आकाश में घिरे बादलों की रिमझिम बूंदाबांदी के बीच नहाए हुए वृक्ष, नाचते मयूर कुहुकते पंछी, हरियाए खेत खलिहान ताल नदियां, सब कुछ मोहित कर देने वाला होता है। ऐसे में गाए जाने वाले राग रागिनी मल्हार हो या ठुमरी कजरी झूला सावनी ऐसे कर्णप्रिय रस छंद सावन के श्रृंगार हैं। ये गीत हमारी सामूहिक स्मृति को प्रतिध्वनित करते हैं जो पीढ़ियों को जोड़ती है। तेजी से शहरीकरण और पारंपरिक जीवन से बढ़ती दूरी के युग में, हमारी धरोहर को संजोने की अपूर्व आवश्यकता है और “सावन” ऐसी ही विशिष्ट प्रस्तुति है जो मैंने बहुत मन से आप सबके लिए तैयार की थी। आइए सावन के साथ मनाएं सावन।
अवध और बनारस की समृद्ध सांगीतिक परंपरा में रची-बसी पद्मश्री मालिनी अवस्थी भारत की क्षेत्रीय लोक संगीत विरासत की एक सशक्त संवाहिका हैं। उनकी प्रस्तुतियाँ केवल गीत नहीं होतीं, बल्कि लोककथा, भावना और भूगोल का संगम होती हैं।जहाँ स्वर, शब्द और स्मृति मिलकर एक ऐसा सांस्कृतिक संसार रचते हैं जो दर्शकों के हृदय में गहराई तक उतर जाता है।
अपने मूल स्वरूप में ‘सावन’ भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का एक उत्सव था। जब आधुनिक जीवन की रफ्तार तेज़ होती जा रही है और डिजिटल संस्कृति हमें अपनी परंपराओं से दूर करती जा रही है, ऐसे समय में यह संगीतमय संध्या हमें यह सार्थक स्मरण कराया कि हम कौन हैं और हमारे सांस्कृतिक मूल कहाँ हैं।
प्रेम, विरह और प्रकृति की संपन्नता से जुड़े पारंपरिक ऋतुगीतों को पुनर्जीवित करते हुए मालिनी अवस्थी की यह प्रस्तुति पीढ़ियों के बीच संवाद का सेतु बन गई थी। यह संगीतमय अनुभव युवा श्रोताओं को उनकी सांस्कृतिक पहचान, अपनी जड़ों से जुड़ाव और परंपरा से उपजी दृढ़ता की गहरी अनुभूति कराता है। एक ऐसी विरासत के माध्यम से, जो समय के साथ न होकर समय से परे है।