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धर्मों में समान मूल्य और मानव कल्याण की भावना : आर्य रवि देव गुप्त

नई दिल्ली, 8 जुलाई। इंस्टीट्यूट ऑफ हार्मनी एंड पीस स्टडीज (IHPS) और आर्य प्रादेशिक मत-मतांतर समन्वय समिति के संयुक्त तत्वावधान में आर्य समाज, ग्रेटर कैलाश नई दिल्ली में एक अंतर-धार्मिक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसका विषय था ऋग्वेद का मंत्र “आ नो भद्राः कृतवो यंतु विश्वतः” अर्थात सभी दिशाओं से शुभ विचार हमारे पास आएं। सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए आर्य आचार्य रवि देव गुप्त ने कहा कि सभी धर्मों में मानवता और सद्भाव के मूल मूल्य निहित हैं। उन्होंने कहा कि विचारों में विविधता स्वाभाविक है, लेकिन इससे दिलों में दूरी नहीं होनी चाहिए।

फादर डॉ. एम.डी. थॉमस ने बताया कि यह सम्मेलन क्रॉस-स्क्रिप्चरल संवाद श्रृंखला का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य विभिन्न धार्मिक ग्रंथों से साझा मूल्यों को सामने लाना है। उन्होंने आग्रह किया कि धर्म का सार इसके नैतिक मूल्यों में है, न कि केवल मान्यताओं में।

सम्मेलन में विविध धर्मों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। पं. विद्या प्रसाद मिश्र ने धार्मिक ग्रंथों को समाज कल्याण का मार्गदर्शक बताया।नजनाब वारिस हुसैन ने कहा कि अच्छे विचार हर जगह से स्वीकार करने योग्य हैं। ज्ञानी मंगल सिंह ने कहा कि प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म है।
सुश्री कार्मेल त्रिपाठी ने शांति और सह-अस्तित्व पर बल दिया।
फादर नॉर्बर्ट हरमन ने प्रेम और भाईचारे के ईसा मसीह के संदेश को दोहराया। डॉ. पतंजलि और डॉ. देव शर्मा वेदालंकार ने श्रेष्ठ विचारों को नैतिकता से जोड़कर प्रस्तुत किया।
समापन भाषण में आचार्य रवि देव गुप्त ने कहा कि सभी धर्मों का उद्देश्य अच्छे विचारों और कर्मों के माध्यम से मानवता की सेवा करना है। फादर डॉ. थॉमस ने निष्कर्ष में कहा कि यदि आप एक अच्छे इंसान हैं, तो यही सबसे बड़ा धर्म है। कार्यक्रम का समापन प्रसाद वितरण के साथ हुआ।

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