पटना, दीपशिखा– जे.डी. महिला महाविद्यालय के दर्शनशास्त्र एवं अर्थशास्त्र विभाग द्वारा संयुक्त रूप से “भारतीय परिप्रेक्ष्य में नारीवाद का विउपनिवेशीकरण” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का सफल आयोजन किया गया। इस सम्मेलन का उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात महिला सशक्तीकरण की समग्र प्रक्रिया एवं प्रयासों पर व्यापक विचार-विमर्श करना था।
महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो. मीरा कुमारी ने उद्घाटन सत्र में 21वीं सदी में महिलाओं के समग्र विकास की आवश्यकता पर बल दिया। सम्मेलन का विषय-प्रवेश अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. प्रियंका सिंह ने प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने उपनिवेशीकरण से विउपनिवेशीकरण तक नारीवाद के विभिन्न चरणों पर प्रकाश डाला।
मुख्य अतिथि वक्ताओं में प्रो. नंदनी मेहता एवं प्रो. वीणा अमृत ने अपने वक्तव्य में भारतीय संदर्भ में नारी मुक्ति के संदर्भ में उपनिवेशवादी संकीर्ण विचारों की आलोचना करते हुए उन्हें खंडित किया।
प्रथम पूर्ण सत्र में श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के कुलपति डॉ. तपन कुमार शांडिल्य ने भारतीय समाज में नारीवाद के विविध स्वरूपों और जाति-आधारित लैंगिक भेदभाव की गहन विवेचना की। वहीं, बी.एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा की पूर्व प्रतिकुलपति प्रो. आभा सिंह ने शास्त्रीय भारतीय दर्शन में स्त्री-पुरुष की समता पर चर्चा की। उन्होंने शिव और शक्ति को एकात्मक रूप में प्रस्तुत करते हुए बताया कि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जिनमें मूल मानवीय मूल्य समान हैं।
द्वितीय पूर्ण सत्र में पटना विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग की सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष प्रो. कुमुदिनी सिन्हा ने ‘विकसित भारत, श्रेष्ठ भारत’ के निर्माण में महिला शिक्षा की केंद्रीय भूमिका पर विचार प्रस्तुत किया। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. पूनम सिंह (सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष, दर्शनशास्त्र विभाग) ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में पितृसत्तात्मक समाज की ओर से सौपी गई लिंग पक्षपाती भूमिकाओं की समीक्षा करते हुए कहा कि नारीवाद का उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर सशक्त बनाना है।
धन्यवाद ज्ञापन अर्थशास्त्र विभाग की डॉ. मंजरी नाथ ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. हिना रानी एवं डॉ. मंजरी नाथ ने संयुक्त रूप से किया।
सम्मेलन के सफल संचालन में आयोजन समिति के सदस्य प्रो. मालिनी वर्मा, डॉ. अमित गिरी, डॉ. कुमारी सुमन, एवं डॉ. अंशिका गुप्ता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और सम्मेलन को उद्देश्यपूर्ण एवं सार्थक बनाने में योगदान दिया।
