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ऋग्वेद का पुरुष सूक्त दार्शनिक एवं वैज्ञानिक परिपेक्ष्य में अति महत्वपूर्ण और वेदों का सार तत्व- डॉ विनय कुमार मिश्र

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विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग एवं डॉ प्रभात दास फाउंडेशन के द्वारा “पुरुष सूक्त : दर्शन एवं विज्ञान” पर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजि

ऋग्वेद का पुरुष सूक्त दार्शनिक एवं वैज्ञानिक परिपेक्ष्य में अति महत्वपूर्ण और वेदों का सार तत्व- डॉ विनय कुमार मिश्र

पुरुष सूक्त के 16 मंत्र गागर में सागर जैसा, जिसके एक-एक मंत्र अमूल्य एवं अध्ययन-अध्यापन के सुयोग्य- डॉ घनश्याम

पुरुष सूक्त अत्यंत पवित्र, प्रसिद्ध, दार्शनिक एवं गूढ़ वैदिक अंश, जिसका आध्यात्मिक, वैज्ञानिक एवं दार्शनिक महत्व सर्वाधिक- डॉ चौरसिया

ऋग्वेद का पुरुष सूक्त दार्शनिक एवं वैज्ञानिक परिपेक्ष्य में अत्यंत ही महत्वपूर्ण एवं वेदों का सार तत्व है। यह पुरुष ही परमपुरुष, आदिपुरुष, परब्रह्म या परमेश्वर है जो माया- मोह तथा लोभ-भय आदि से मुक्त निर्लिप्त भाव से सर्वत्र व्याप्त है। यह अधिकांश दर्शनों एवं कई वैज्ञानिक सिद्धांतों का आधार है। यह परम पुरुष मोक्ष दाता है जो सबके हृदय में वास करता है। उक्त बातें कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व वेद विभागाध्यक्ष डॉ विनय कुमार मिश्र ने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग तथा डॉ प्रभात दास फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में पीजी संस्कृत विभाग में “पुरुषसूक्त : दर्शन और विज्ञान” विषयक राष्ट्रीय सेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में कही। उन्होंने सेमिनार के विषय को प्रासंगिक एवं शोध के लिए अति गंभीर बताते हुए कहा कि पुरुषसूक्त से प्रेरणा पाकर ही कपिल ने शांख्यदर्शन का प्रणयन किया। पुरुष शांत भाव से रहता है, पर उसकी उपस्थिति मात्र से ही ऊर्जा का संचार होता है। डॉ मिश्र ने ब्रह्मांड की उत्पत्ति के निर्मित्त, उपादान एवं सामान्य करणों को विस्तार से बताते हुए कहा कि प्रकृति उपादान कारण, परमात्मा निमित्त कारण तथा अन्य सभी साधन सामान्य कारण हैं।
डॉ प्रभात दास फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने कहा कि वेद के हर मंत्र में विज्ञान है। ईश्वर सजीव एवं निर्जीव सभी में और सर्वत्र व्याप्त है। विज्ञान का सतत विकास हो रहा है। आज तक भी हम वैदिक विज्ञान को पूर्णतया नहीं समझ पाए हैं। उन्होंने बताया कि पुरुष सूक्त में 15 ऋचाएं अनुष्टुप एवं 16 वां ऋचा त्रिष्टुप छन्द में है। सेमिनार में लोग अपने विचारों को व्यक्त करते हैं, जिनसे तर्क- वितर्क के माध्यम से समाज को नई सीख मिलती है। भूगोल- प्राध्यापक डॉ सुनील कुमार सिंह ए ने कहा कि हम लोग मात्र 25% ब्रह्मांड को ही देख पाते हैं। संस्कृत साहित्य में विज्ञान का अत्यधिक प्रयोग हुआ है। यज्ञानुष्ठान एक शोध प्रयोग ही है। संस्कृत और विज्ञान के संगम से प्राचीन विज्ञान का स्वरूप प्रकट होगा। उन्होंने संस्कृत को परफेक्ट विषय बताते हुए प्रसन्नता व्यक्त किया कि आज संस्कृत आगे बढ़ रहा है। इसमें वर्णित ज्ञान- विज्ञान को डिकोड करने की जरूरत है।
विषय प्रवेश करते हुए सेमिनार के संयोजक डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि पुरुष सूक्त दर्शन और विज्ञान का अद्भुत उदाहरण है जो ऋग्वेद का एक अत्यंत पवित्र, प्रसिद्ध, दार्शनिक एवं गूढ़ वैदिक अंश है, जिसमें सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्मांडीय चेतना, समाज- रचना, यज्ञ की महिमा तथा परम पुरुष के वैभव का वर्णन है। इसका आध्यात्मिक, वैज्ञानिक सांस्कृतिक एवं दार्शनिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। इस सूक्त के अनुसार यज्ञ ही सृष्टि का मूल आधार है। त्याग, बलिदान और समर्पण से ही सृजन होता है।
उन्होंने बताया कि पुरुष सूक्त में वर्णन है कि सब कुछ विराट पुरुष से ही उत्पन्न हुआ है जो ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना को पुष्ट करता है। यह सूक्त हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जिसका उपयोग विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों एवं पूजा-पाठों में किया जाता है। इसमें पुरुष को सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान बताया गया है जो महानतम एवं सर्वेश्वर है। इसका अध्ययन और पाठ करने से आध्यात्मिक विकास और आत्म-साक्षात्कार में मदद मिलती है।
अध्यक्षीय संबोधन में डॉ घनश्याम महतो ने कहा कि पुरुष सूक्त के 16 मंत्र गागर में सागर जैसे हैं, जो सदा अमूल्य एवं अध्ययन-अध्यापन के योग्य हैं। ज्ञान के दो रूप हैं- दर्शन जो तर्क-वितर्क के योग्य आंतरिक हैं तथा विज्ञान जो प्रयोगात्मक एवं बाह्य रूप में हैं। उन्होंने कहा कि पुरुष सूक्त को विभिन्न धार्मिक एवं आध्यात्मिक परंपराओं में महत्वपूर्ण माना जाता है जो जीवन की एकता एवं परस्पर संबंध पर जोर देता है। इसके अनुसार चारों वर्णों की उत्पत्ति का स्रोत परम पुरुष ही है, इसलिए सभी समान रूप से पूज्य एवं अनिवार्य हैं।
सेमिनार में लोकवैद्य महेन्द्र लाल दास, जेएनयू की संस्कृत-छात्रा प्रेरणा नारायण, डॉ सुजय पाण्डे, सोनू कुमार तथा सुयश प्रत्यूष आदि ने संबोधित किया। शोधार्थी नीतू कुमारी के संचालन में आयोजित सेमिनार में संस्कृत-प्राध्यापिका डॉ ममता स्नेही ने स्वागत तथा डॉ मोना शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया। अतिथियों का स्वागत पाग, चादर एवं पुष्प-पौधों से किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ। छत्तीसगढ़ से आयी संस्कृत-शिक्षिका दीपाली आर्या ने दीप प्रज्वलन मंत्र का गायन किया। सेमिनार में डॉ अशोक कुमार, डॉ मंजरी खरे, प्रो विनोदानंद झा, डॉ सुनीता कुमारी, डॉ संजीव कुमार साह, डॉ प्रियंका राय, डॉ रश्मि शिखा, डॉ प्रेम कुमारी, लाल कुमार राय, रवि रंजन, सुमित कुमार पांडे, अमित कुमार, कुंदन कुमार, रोहित ब्रह्मानंद, मंजू अकेला, बालकृष्ण कुमार सिंह, पंकज कुमार, राकेश कुमार, नीतू कुमारी, उदय कुमार उदेश, सुयश प्रत्यूष, योगेन्द्र पासवान, अनिल कुमार सिंह, कृष्ण कुमार भगत तथा जिग्नेश कुमार ठाकुर सहित 70 से अधिक व्यक्ति उपस्थित थे, जिन्हें आयोजक द्वारा प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।

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